एक्ट ऑफ गॉड हादसा, आपदा या अपराध ,कानून क्या कहता है, सुप्रीम कोर्ट ने किया स्पष्ट

प्राकृतिक आपदा और आपराधिक जिम्मेदारी पर सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय

प्राकृतिक आपदाओं के दौरान होने वाली दुखद घटनाओं के बाद अक्सर यह सवाल उठता है कि आखिर आपराधिक जिम्मेदारी किस पर तय की जाएगी। क्या हर हादसे के लिए किसी सरकारी अधिकारी या कर्मचारी को दोषी ठहराया जा सकता है।

सुप्रीम कोर्ट के इस महत्वपूर्ण निर्णय ने कानून की स्थिति को पूरी तरह स्पष्ट कर दिया है। यह फैसला भावनाओं पर नहीं बल्कि तथ्यों, साक्ष्यों और कानूनी सिद्धांतों पर आधारित है।

मामले की पृष्ठभूमि क्या थी

वर्ष 2018 में चेन्नई ट्रेकिंग क्लब द्वारा महिला दिवस के अवसर पर एक ट्रेकिंग कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस ट्रेक में लगभग 27 लोग शामिल थे और यह ट्रेक कोलुक्कुमलाई से कुरंगनी तक तय किया गया था।

अगले दिन अचानक पूरे क्षेत्र में भीषण जंगल की आग फैल गई। तेज हवा के कारण आग तेजी से फैली और ट्रेकिंग कर रहे लोग इसकी चपेट में आ गए। इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना में कई लोगों की जान चली गई।

फॉरेस्ट रेंजर पर क्या आरोप लगाए गए

घटना के बाद फॉरेस्ट रेंजर पर गंभीर आपराधिक धाराओं में मामला दर्ज किया गया। आरोप यह था कि उन्होंने ट्रेकिंग की अनुमति दी, शुल्क लिया और गाइड उपलब्ध कराया।

आईपीसी की धारा 304 पार्ट II, 326, 338 और 304A जैसी धाराएं लगाई गईं, जो गैर-इरादतन हत्या और लापरवाही से मृत्यु से संबंधित हैं।

प्राकृतिक आपदा और आपराधिक लापरवाही में अंतर

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जंगल की आग एक प्राकृतिक आपदा थी, जिसे कानून की भाषा में vis major या act of God कहा जाता है।

ऐसी स्थिति में तब तक आपराधिक जिम्मेदारी तय नहीं की जा सकती, जब तक यह साबित न हो जाए कि आरोपी ने जानबूझकर कोई लापरवाही या अपराध किया।

सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट कानूनी दृष्टिकोण

अदालत ने कहा कि केवल किसी पद पर होने से कोई व्यक्ति स्वतः अपराधी नहीं बन जाता। आईपीसी की धारा 304 पार्ट II तभी लागू होती है जब मृत्यु का ज्ञान होते हुए कार्य किया गया हो।

इस मामले में ऐसा कोई प्रमाण नहीं था कि फॉरेस्ट रेंजर को पहले से आग की जानकारी थी या उन्होंने जानबूझकर लोगों को खतरे में डाला।

ट्रायल और हाई कोर्ट के आदेश क्यों रद्द हुए

ट्रायल कोर्ट और हाई कोर्ट ने पहले ट्रायल चलाने की अनुमति दी थी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब प्रथम दृष्टया ही अपराध नहीं बनता, तो किसी व्यक्ति को मुकदमे के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता।

यह CrPC की धारा 227 के सिद्धांत को भी मजबूत करता है, जिसका उद्देश्य निर्दोष व्यक्ति को अनावश्यक उत्पीड़न से बचाना है।

सरकारी कर्मचारियों और आम जनता के लिए संदेश

यह निर्णय सरकारी कर्मचारियों के लिए बड़ी राहत है। यदि हर दुर्घटना में अधिकारियों पर आपराधिक केस दर्ज किए जाएंगे, तो वे अपने कर्तव्य निडर होकर नहीं निभा पाएंगे।

साथ ही यह फैसला आम जनता को भी यह समझाता है कि हर दुखद घटना के पीछे किसी व्यक्ति को अपराधी ठहराना न्यायसंगत नहीं होता।

इस निर्णय से मिलने वाले मुख्य कानूनी सिद्धांत

पहला, प्राकृतिक आपदा को आपराधिक कृत्य नहीं माना जा सकता। दूसरा, आपराधिक धाराएं तभी लगेंगी जब लापरवाही या आपराधिक मंशा साबित हो।

तीसरा, केवल सरकारी पद पर होना अपराध का आधार नहीं बनता। कानून संतुलन और न्याय के सिद्धांतों पर चलता है।

निष्कर्ष और कानूनी मार्गदर्शन

यदि आपके या आपके किसी परिचित के खिलाफ किसी दुर्घटना या प्राकृतिक आपदा के बाद आपराधिक मामला दर्ज कर दिया गया है, तो यह निर्णय आपके लिए बेहद महत्वपूर्ण है।

सही समय पर सही कानूनी सलाह लेने से बड़ी राहत मिल सकती है। Delhi Law Firm पूरे भारत में आपराधिक, पारिवारिक और Court Marriage, कानूनी मामलों में सहायता प्रदान करता है।

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